92 साल की उम्र में दादा जी रोजाना केवल दो वक्त के खाने के लिए मेहनत कर रहे हैं। इस उम्र में काम करना कितना मुश्किल होता है, लेकिन दादा जी भेलपुरी बेचते हैं ताकि अपना गुजारा कर सकें। उनकी मेहनत और समर्पण सच में प्रशंसनीय हैं। हमें ऐसे लोगों को कभी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।
जब आप इनसे भेलपुरी खरीदते हैं, तो ये बहुत खुश हो जाते हैं और आपको दिल से दुआएं देते हैं। उनकी आँखों में चमक और चेहरे पर मुस्कान देखना वाकई दिल को छू लेने वाला होता है। दादा जी की मेहनत और लगन को हम दिल से सलाम करते हैं।
हम सभी से अनुरोध करते हैं कि ऐसे मेहनती और आत्मनिर्भर लोगों की मदद करें और उनके चेहरे पर मुस्कान लाएं। उनके संघर्ष और आत्मसम्मान को समझें और उनकी छोटी-छोटी मदद करके उनका हौसला बढ़ाएं।
दादा जी जैसे लोग हमें सिखाते हैं कि जीवन में किसी भी उम्र में मेहनत और आत्मनिर्भरता का महत्व कभी कम नहीं होता। उनकी कहानी हमें प्रेरित करती है कि हम भी अपने जीवन में संघर्ष और समर्पण के साथ आगे बढ़ें और दूसरों की मदद करने का संकल्प लें।
दादा जी की यह कहानी हमें याद दिलाती है कि छोटे-छोटे कामों से भी हम किसी की जिंदगी में बड़ा बदलाव ला सकते हैं। आइए, हम सभी मिलकर ऐसे मेहनती लोगों का सम्मान करें और उनकी मदद के लिए हमेशा तैयार रहें