“ममा, माही से तो मेरा कब का ब्रेकअप हो गया और अगले हफ्ते उसकी शादी है…” आदित्य ने बेपरवाह स्वर में कहा और वहां से चला गया। मैं हैरत में पड़ गई। आज के बच्चे इतने बिंदास… इन्हें मोहब्बत खेल लगती है। प्यार को यूं भुला देना जैसे क्रिकेट के मैदान में छक्का लगाते वक्त बॉल गुम हो गई हो… मैं गुमसुम-सी खड़ी अपने अतीत में झांकने लगी।
पापा का लखनऊ से दिल्ली ट्रांसफर हो गया था। मैंने वहां एक नए स्कूल में दाखिला लिया। बीच सत्र में एडमिशन लेने के कारण मेरे लिए पूरी क्लास अपरिचित थी। शिफ्टिंग के कारण मैं काफी दिन स्कूल नहीं जा पाई, इसलिए मेरा सिलेबस भी छूट गया था। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। मेरी क्लास टीचर ने उसी क्लास में पढ़ने वाले आर्यन से मेरा परिचय करवाया और उसे हिदायत दी, “आर्यन, तुम काव्या की पढ़ाई में मदद करना।” आर्यन ने मुझे अपने नोट्स दिए, जिससे मुझे पढ़ाई में काफी मदद मिली।
यह संयोग ही था कि मैं और आर्यन एक ही कॉलोनी में रहते थे, फिर हम स्कूल भी साथ आने-जाने लगे। एक-दूसरे के घर जाकर पढ़ाई भी करते और पढ़ाई के साथ अन्य विषयों पर भी चर्चा करते थे। कभी-कभी साथ मूवी देखने जाते, तो कभी छत पर यूं ही टहलते। धीरे-धीरे हमारे मम्मी-पापा भी जान गए कि हम अच्छे दोस्त हैं।
हम दोनों ने स्कूल में टॉप किया। इसके बाद हम कॉलेज में आ गए। आर्यन इंजीनियरिंग करने रुड़की चला गया और मैं दिल्ली में पास कोर्स करने लगी। कॉलेज पूरा होते-होते पापा ने मेरी शादी के लिए लड़का ढूंढना शुरू कर दिया। छुट्टियों में आर्यन के घर आने पर मैंने उसे अपनी शादी की चर्चा के बारे में बताया। वह एकाएक गंभीर हो गया। मेरा हाथ पकड़कर बोला, “काव्या, मैं तुमसे बेहद प्यार करता हूं। आज से नहीं, जब से पहली बार देखा था, तब से ही। मैंने रात-दिन तुम्हारे ख्वाब देखे हैं। प्लीज़ मेरी नौकरी लगने तक इंतज़ार कर लो। मेरे अलावा किसी से शादी की सोचना मत।” मुझे भी आर्यन पसंद था। मैंने उसे हां कह दिया।
दो महीने बाद पापा ने अभिनव को पसंद कर लिया। उनके मान-सम्मान के आगे मैं अपनी पसंद नहीं बता पाई। एक बार मां से ज़िक्र किया था, “मां, मैं आर्यन को पसंद करती हूं और उससे ही शादी.” बात पूरी होती उससे पहले ही मां ने एक थप्पड़ मार दिया। “बड़ों के सामने यूं मुंह खोलते हुए शर्म नहीं आती? चुपचाप पापा के बताए हुए रिश्ते के बंधन में बंध जाओ वरना अच्छा नहीं होगा।”
मां की धमकी के आगे मैं मजबूर थी। मैं चुपचाप शादी करने के लिए तैयार हो गई। उस वक्त मोबाइल नहीं होते थे। मैं आर्यन को अपनी शादी के बारे में नहीं बता पाई। शादी के बाद मैं आगरा आ गई।
करीब दो साल बाद मेरी मुलाकात आर्यन से हुई। हम दोनों के बीच सुनने-सुनाने को कुछ शेष नहीं था। आर्यन ने ही अपनी बात कही, “ज़रूर तुम्हारी कोई मजबूरी रही होगी, वरना कोई यूं बेवफा नहीं होता। तुम्हारी शादी हो गई तो इसका मतलब यह नहीं है कि मैं तुमसे मोहब्बत करना छोड़ दूं। तुम अपनी शादी निभाओ और मुझे अपने इश्क से वफ़ा करने दो…” हम दोनों की आंखें नम हो गईं।
तब से लेकर आज तक आर्यन ने मेरी हर तकलीफ, हर दुख और हर खुशी में साथ दिया। मैं आर्यन जैसा सच्चा दोस्त पाकर निहाल हो गई। अभिनव और आर्यन की अच्छी बनती भी है। उसने शादी नहीं की। एक बार मेरे ज़ोर देने पर कहा, “मेरे मन में बसी मूरत के जैसी कोई मिली तो इन यादों को एक पल में ही अलविदा कह दूंगा…”
वह अक्सर कहता है…
“तुझे पा लेते तो यह किस्सा ही खत्म हो जाता,
तुझे खोकर बैठे हैं यकीनन कहानी लंबी होगी।”