भूलना है तो खुद दर्द सहो ओर औरों के आंसू पोछो
अन्य प्राणियों के साथ मित्रता खुशी लाती है
प्रसन्नता न तो सुविधा में है और न ही समझौते में, यह केवल स्वीकृति में है
दूसरों को खुश करने में ही अपनी खुशी है
“अंतर्राष्ट्रीय खुशी दिवस” वर्ष 2013 से इस दिन को मनाना शुरू किया। संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने 12 जुलाई 2012 को अपने संकल्प 66/281 के तहत हर साल 20 मार्च को “अंतर्राष्ट्रीय प्रसन्नता दिवस” मनाने की घोषणा की, जिसके बाद से दुनिया भर के लोगों ने इस दिन को मनाना शुरू कर दिया है। इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य लोगों को यह एहसास कराना है कि न केवल आर्थिक विकास जरूरी है बल्कि लोगों की खुशी और भलाई भी उतनी ही महत्वपूर्ण है।
आजकल समाज में सर्वत्र चल रहे पाखंड के कारण व अधिक काम के कारण मन निरंतर तनाव में रहता है। दरअसल खुशी का कोई दिन फिक्स नहीं होता और होना भी नहीं चाहिए। मनुष्य को चाहिए कि वह हर स्थिति में अपने मस्तिष्क का मानसिक संतुलन बनाकर प्रसन्न व प्रसन्न रहने का प्रयास करता रहे। यहाँ प्रश्न यह है कि हम सुख किसे कहते हैं? अधिक पैसा, विलासितापूर्ण जीवन, उच्च जीवन स्तर आदि या आत्मसंतोष?
यदि धन जैसी भौतिक वस्तुएँ ही हमारे सुख का एकमात्र कारण हैं, तो यह समझना चाहिए कि हमने स्वयं ही भाग्य, क्रियाकलापों और अपने आस-पास के लोगों को अपने सुख का द्वार दे दिया है। जब किसी का सुख और आनंद किसी दूसरे पर निर्भर करता है तो इसका सीधा अर्थ होगा कि कोई भी समय, परिस्थिति या व्यक्ति हमें दुखी कर सकता है। कहते हैं कि जिससे हम सुख की आशा रखते हैं, अनजाने में हम उसे दुःखी करने का अधिकार दे देते हैं। इसके बजाय, अगर हम खुद से खुश रहने की, आनंदित रहने की उम्मीद करते हैं?
आधुनिक समय में बढ़ते आधुनिकीकरण के कारण कुछ नया करने की लोगों की इच्छाएं और उम्मीदें बढ़ गई हैं, जिससे हर कोई अधिक कमाने और उच्च जीवन स्तर जीने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है, और फिर जब वांछित परिणाम प्राप्त नहीं होता है, तो वे मानसिक उथल-पुथल महसूस करते हैं, जिससे कई बार व्यक्ति स्वयं को खोकर कभी-कभी आत्महत्या की ओर अग्रसर हो जाता है जो अत्यंत दयनीय एवं अवांछनीय है।
चिंता जैसा शब्द आजकल बहुत चलन में है। कम या ज्यादा हर इंसान इससे पीड़ित है। अगर आप अबोल जीव से दोस्ती करते हैं तो आप इस तरह की समस्याओं से छुटकारा पा सकते हैं। इनकी दोस्ती जीवन में कभी निराश नहीं करती और यह सच्चा प्यार और सच्ची खुशी लाती है।
यदि हम हर स्थिति में प्रसन्न रहें और आत्मसंतुष्ट रहकर स्वयं से सुख की आशा करें तो हम दुखी या निराश नहीं होंगे। खुशी कभी भौतिकवादी चीजों से नहीं मिलती है। यह हमेशा दिल से आता है। यदि आध्यात्मिक सुख की बात करें तो यह नित्य योग-प्राणायाम, अच्छी पुस्तकें पढ़ने, किसी कला में निरन्तर संलग्न रहने से प्राप्त किया जा सकता है।
वर्ष 2020 में संयुक्त राष्ट्र की “वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट” के अनुसार, फ़िनलैंड को दुनिया का सबसे खुशहाल देश माना जाता है, इसके बाद डेनमार्क, स्विटज़रलैंड, आइसलैंड, नॉर्वे, नीदरलैंड, स्वीडन, न्यूज़ीलैंड, ऑस्ट्रिया, लक्ज़मबर्ग, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया का स्थान आता है। और भारत 144वें स्थान पर है।
प्रसन्नता न तो सुविधा में है और न ही समझौते में, यह केवल स्वीकृति में है
भूलना है तो खुद दर्द सहो ओर औरों के आंसू पोछो
दूसरों को खुश करने में ही अपनी खुशी है
– मित्तल खेतानी