भारत में पुराने जमाने में #गुरुकुल प्रथा हुआ करती थी, जिसमें विद्यार्थी अपना घर-बार छोड़कर पढ़ाई के लिए गुरु के पास रहते थे और जीवन के विभिन्न विषयों में #निपुणता हासिल करते थे। एक #गुरुकुल में कई सारे शिष्य अपने #गुरु के पास रहकर अध्ययन कर रहे थे। गुरुजी, जो शिक्षण में अत्यंत विद्वान थे, हमेशा अपने विद्यार्थियों को प्रेरित करते थे कि वे जीवन के हर क्षेत्र में निपुण बनें।
हालांकि, उनमें से एक शिष्य था जो अपनी आलस्य के लिए जाना जाता था। गुरुजी को उसकी स्थिति को लेकर चिंता थी, क्योंकि वे जानते थे कि आलस्य व्यक्ति को बर्बाद कर सकता है। इसलिए उन्होंने उस आलसी शिष्य को सुधारने के लिए एक योजना बनाई।
गुरुजी ने उस शिष्य को एक चमकीला पत्थर दिया और कहा, “यह चमत्कारी पत्थर है जो किसी भी धातु को सोने में बदल सकता है। मैं दो दिनों के लिए आश्रम से बाहर जा रहा हूं। तुम इसे प्रयोग कर सकते हो।” गुरुजी चले गए, और शिष्य ने तुरंत सोचा कि वह बाजार जाकर ढेर सारा लोहे का सामान खरीदेगा और उसे सोने में बदल देगा, जिससे उसकी सारी परेशानियाँ समाप्त हो जाएंगी।
लेकिन शिष्य का आलसी स्वभाव उसे बाजार जाने से रोकता रहा। पहले उसने आराम करने का निर्णय लिया, फिर खाना खाने के बाद सो गया। अंत में, रात हो गई और वह बाजार नहीं गया। जब वह गुरुजी से मिलने गया, तब उन्होंने पत्थर को एक और दिन के लिए रखने की उसकी विनती ठुकरा दी।
इस अनुभव ने शिष्य को यह महत्वपूर्ण सबक सिखाया कि आलस्य उसकी सबसे बड़ी बाधा थी। उसने ठान लिया कि वह आलस्य को त्याग देगा और हर काम समय पर करेगा। गुरुजी ने उसे एक साधारण पत्थर को चमत्कारी पत्थर बताकर यह सिखाया कि आलसी व्यक्ति चाहे कितनी भी बड़ी #अवसर मिले, वह अपने आलस्य को नहीं छोड़ सकता।