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The real feeling of happiness: Family matters more than money
लाइफस्टाइल

खुशी का असली अहसास: पैसे से ज्यादा मायने रखता है परिवार

कई साल पहले, मैं और मेरी बेटी अदिति काम और ज्यादा पैसे कमाने की लालच में कनाडा चले गए थे। उस वक्त मेरा बाकी परिवार भारत में, बॉम्बे में रह रहा था। मैं अपनी पत्नी मीरा और छोटे बेटे रोहन को पीछे छोड़ आया था। शुरुआत में मुझे लगता था कि मैंने जिंदगी की सबसे बड़ी छलांग लगा ली है—कनाडा में बहुत पैसा कमा रहा था, करियर भी शानदार था, और दुनिया की बेहतरीन सुविधाओं का आनंद ले रहा था। हर तरफ से सफलता मेरे कदम चूम रही थी।
कुछ सालों तक ऐसा लगा कि मेरे पास सब कुछ है। पैसे की कोई कमी नहीं थी, मेरी जीवनशैली भी पहले से कहीं ज्यादा शानदार हो गई थी। आलीशान घर, महंगी गाड़ियां, हर महीने विदेश यात्रा—जैसे सपनों की ज़िन्दगी जी रहा था। और प्रमोशंस भी एक के बाद एक मिल रहे थे, जिससे मेरी पहचान और बढ़ती जा रही थी। लेकिन जल्द ही एक अजीब सा खालीपन महसूस होने लगा।
मैं सोचता था कि इतनी मेहनत, इतनी तरक्की के बाद भी मुझे वो खुशी क्यों नहीं मिल रही थी, जिसकी मुझे उम्मीद थी। मेरे पास ढेर सारा पैसा तो था, लेकिन उसे खर्च करने का कोई मकसद नहीं दिख रहा था। प्रमोशन तो मिलते थे, पर उस खुशी को बांटने वाला कोई नहीं था। जो प्रमोशन की खुशी कभी मेरे चेहरे पर मुस्कान लाती थी, वह अब बस एक औपचारिकता लगने लगी। घर लौटने पर कोई प्यार भरी आवाज सुनाई नहीं देती थी, अदिति भी अपनी पढ़ाई और काम में व्यस्त हो चुकी थी। धीरे-धीरे, मुझे एहसास हुआ कि जो चीज़ मुझे सच में खुशी देती थी, वह पैसे या प्रमोशन नहीं थी, बल्कि मेरा परिवार था, जो मुझसे कोसों दूर था।
एक दिन मैंने फैसला किया, कि अब और नहीं। मैंने अपने करियर के सबसे ऊँचे मुकाम पर होते हुए भी सब कुछ छोड़ दिया। यह कोई आसान फैसला नहीं था—वहां एक शानदार जीवन था, लेकिन मुझे पता था कि असली खुशियां मेरे परिवार के पास हैं, बॉम्बे में। मैंने सारे अवसर, सारे प्रमोशंस, और पैसा छोड़कर घर वापस जाने का फैसला किया। और अब, जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूँ, तो कह सकता हूँ कि यह मेरी जिंदगी का सबसे सही और महत्वपूर्ण फैसला था।
मैं घर वापस आया, और मीरा, रोहन और अदिति के साथ फिर से वही पुराना सादा जीवन जीने लगा। कनाडा की आलीशान पार्टियों और महंगे रेस्तरां को पीछे छोड़कर, मैंने अपने परिवार के साथ साधारण दाल-चावल खाने का आनंद लिया। वह स्वाद, वह सुकून दुनिया के किसी भी सात-सितारा रेस्तरां को मात दे सकता है। मुझे वह संतुष्टि मिली, जो किसी भी विदेश यात्रा या प्रमोशन से नहीं मिल पाई थी।
आज मैं सेवानिवृत्त हूँ। अब मेरा दिन पूरी तरह से सुकून भरा होता है। हर शाम मैं अपनी नियमित सैर पर जाता हूँ, लेकिन हमेशा जल्दी घर लौटने की कोशिश करता हूँ। क्यों? क्योंकि घर पर मेरी प्यारी पोती आर्या मेरा इंतजार करती है। उसे सोने से पहले उसके साथ थोड़ी देर खेलने का जो समय मुझे मिलता है, वह मेरे लिए दिन का सबसे कीमती पल होता है। उसकी मासूमियत, उसकी हंसी, और उसके साथ बिताए वे कुछ क्षण मेरे लिए दुनिया की सबसे बड़ी दौलत हैं।
मैंने जीवन में बहुत कुछ देखा, बहुत कुछ पाया और बहुत कुछ खोया भी। लेकिन अब मुझे यह साफ हो गया है कि असली खुशी पैसे में नहीं, बल्कि अपनों के साथ बिताए गए उन छोटे-छोटे पलों में है, जो हमारी आत्मा को सुकून देते हैं।

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