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“सघन अंधकार के बीच दोस्ती की रोशनी”
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“दुख की गहराई में स्नेह की उजाला: एक नई शुरुआत की ओर”

रचना की नई शुरुआत: एक कठिन समय में दोस्ती की ताकत

अस्पताल के बिस्तर पर लेटी हुई रचना लाचार और कातर दृष्टि से अपनी मां की ओर देख रही थी। उसकी आंखों में उसके मंगेतर अर्जुन द्वारा सगाई तोड़ दिए जाने का दर्द साफ नजर आ रहा था। आज दस दिन हो गए हैं जब वह सड़क पार कर रही थी और एक दुर्घटना में वह सड़क पर गिर पड़ी थी। उसके एक पैर को कुचलती हुई गाड़ी निकल गई थी। इसके बाद ही अर्जुन के घरवालों ने रिश्ता तोड़ने का फैसला कर लिया और इसे अंजाम दे दिया।

“हे भगवान, अब क्या होगा?” रचना के लिए हर पल पहाड़ जैसा हो रहा था। इसी सोच में डूबी हुई रचना ने अपनी बचपन की सहेली पूजा को आते देखा। रचना ने उसे अपने पास बुला लिया।

पूजा ने उसकी उदासी देखकर पूछा, “क्या बात है, इतनी बुझी-बुझी सी क्यों लग रही हो?”
“यों ही सोई थी, इसलिए तुम्हें ऐसा लगा,” लेकिन रचना पूजा को बहला नहीं सकी। पूजा ने उसके सिर को सहलाते हुए स्नेह से पूछा, “क्या हुआ? अर्जुन नहीं आया?”

अब रचना का गला भर आया था। कुछ पल रुक कर उसने कहा, “उसने सगाई तोड़ दी।”

“बहुत अच्छा किया,” पूजा की आंखें क्रोध से भर गईं। “भगवान का धन्यवाद करो कि तुम बच गई। अगर यह हादसा छह महीने बाद हुआ होता तो? तुम उनके लिए बेकार हो जाती। जरा सोचो, वह तब तुम्हें छोड़ देता तो क्या होता? अर्जुन को तुमसे प्यार नहीं था, रचना। तुम धोखे के अंधे कुएं में गिरने से बच गई।”

इस दुख की घड़ी में रचना और उसकी मां का दिल पूजा की इन वात्सल्य भरी बातों से विश्वासघात और अपमान के घुटन से बाहर निकल चुका था। और रचना के चेहरे पर हंसी तो नहीं आई थी, लेकिन अब वह सामान्य दिख रही थी।

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