उदयपुर के कोर्ट सर्कल पर एक बुजुर्ग व्यक्ति, घनश्याम, अपनी छोटी सी दुकान (ठेला) पर समोसा और पोहा बेचते हैं। एक दिन, जब भारी बारिश हो रही थी, एक व्यक्ति ने अपनी मोटरसाइकिल घनश्याम के स्टॉल के पास खड़ी की और गर्म समोसे का ऑर्डर दिया। बारिश और बुजुर्ग उम्र को देखते हुए, उस व्यक्ति ने जिज्ञासा में पूछा, “अंकल, आज इतनी तेज बारिश हो रही है, आपने आराम क्यों नहीं किया? आपकी उम्र को देखते हुए, एक दिन की छुट्टी लेना चाहिए था।”
घनश्याम ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, “बेटा, इस उम्र में मैं पैसे के लिए काम नहीं करता। मैं अपने दिल की खुशी के लिए काम करता हूँ। घर पर अकेले बैठने से यहाँ रहना बेहतर है। जब मैं देखता हूँ कि लोग मेरे बनाए भोजन का स्वाद लेकर खुश होते हैं, तो उनके खुश चेहरे मेरे दिल को खुशी से भर देते हैं।”
घनश्याम की यह बात एक गहरी सोच को जन्म देती है। उनकी कहानी बताती है कि जीवन का उद्देश्य केवल पैसे कमाना नहीं होता। बहुत से लोग पैसे के लिए काम करते हैं और इसी चक्कर में अपने जीवन की असली खुशी और उद्देश्य को भूल जाते हैं। वे हर दिन मेहनत करते हैं, लेकिन अपनी आत्मिक संतोष और खुशी को खोजने की कोशिश नहीं करते।
घनश्याम जैसे कुछ लोग हैं, जो काम को सिर्फ एक जीविका का साधन नहीं मानते। वे काम को एक ऐसे उद्देश्य के रूप में देखते हैं, जो उन्हें मानसिक और भावनात्मक संतोष प्रदान करता है। उनके लिए काम का मतलब सिर्फ कमाई नहीं, बल्कि दूसरों की खुशी में अपनी खुशी खोजने का माध्यम है।
आज की पीढ़ी अक्सर आसान जीवन के सपने देखती है, जहां पैसे की कोई कमी न हो और हम अपनी इच्छाओं को पूरी तरह से पूरा कर सकें। लेकिन घनश्याम की कहानी हमें याद दिलाती है कि असली खुशी और संतोष तब आता है जब हम अपनी मेहनत का फल दूसरों की खुशी में देख पाते हैं। जब हम अपने काम को एक उद्देश्य के रूप में स्वीकार करते हैं, तो वह हमारे जीवन को संपूर्णता और अर्थ प्रदान करता है।
इसलिए, जीवन में पैसे से ज्यादा महत्वपूर्ण है कि हम अपने काम को एक उद्देश्य, एक लक्ष्य और एक खुशी का स्रोत मानें। घनश्याम की तरह, हमें भी अपने जीवन के काम को उस प्रेम और समर्पण से करना चाहिए, जिससे हम न सिर्फ खुद को, बल्कि दूसरों को भी खुशी दे सकें।