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Seema's Struggle Journey: The story of proving herself by overcoming the challenges of in-laws
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सीमा की संघर्षपूर्ण यात्रा: ससुराल की चुनौतियों को पार कर खुद को साबित करने की कहानी

ससुराल में लगातार मिलने वाले दुखों से तंग आकर छः महीने मायके में बिताने के बाद आज सीमा अपने ससुराल लौट रही थी। पिछले हफ्ते पिता ने उसे कहा था, “हम अब बूढ़े हो गए हैं। तुम्हारी लड़ाई अब हम नहीं लड़ सकते। कान खोल कर सुन लो, अपना घर खुद बचाओ और बसाओ, जैसे एक औरत बनाती है घर।”

सीमा ने पिता की इस चेतावनी को भी वैसे ही मान लिया जैसे उसने बचपन से लेकर जवानी तक हर चेतावनी मानी थी। क्या पहने, क्यों पहने, बाल कैसे बांधे, कैसे उठे-बैठे, हंसे, सब कुछ वह पिता के कहने से पहले उनकी आंखों से ही पढ़ लेती और उसी अनुरूप ढलती रही।

आज पिता को कह कर बताना पड़ा कि बेटी अपने बच्चे के साथ अपने घर जा रही है। इसका मतलब, यह आज तक की सबसे बड़ी चेतावनी है, उसने समझ लिया।

वह नजरें झुकाए, धीमी रुंधी आवाज में इतना ही बोल पाई, “जी पापा।”

माँ ने बेटी की आँखों में झाँका, वहां शून्य था। एक ही क्षण में बेटी कितनी सहजता से भाव बदल गई, माँ हैरान थी। लड़की की कितने स्तरों पर कैसी-कैसी ट्रेनिंग करता है यह समाज, माँ सोच रही थी।

माँ ने पिता की आँखों में झाँका। वहां अजीब सी विरक्ति फैली हुई थी।

माँ का दिल अंदर से फटना चाह रहा था कि एक औरत कैसे बनाती है घर, यातना, बलिदान और गुलामी, माँ सोचती रही।

सुबह पिता दामाद से बात कर रहे थे, “स्टेशन पर हमारी बेटी पहुँच जाएगी बेटा, आप उसे जैसा चाहो वैसा रखो, आप उसे स्टेशन से रिसीव करने आ जाना।”

सीमा ने दामाद से बात करते पिता को देखा तो अंदर से रो पड़ी। फिर बोली, “पिताजी, मुझे आप कुछ पैसे और सिलाई मशीन दे दीजिए।”

पिता आज उसे छोड़ने ससुराल तक नहीं आ सके। घर से ही जरूरी नसीहतें देकर बेटी को विदा किया। भाई और माँ स्टेशन तक छोड़ने आए और माँ बोली, “बेटा, जा ससुराल, हिम्मत मत हारना, तू कमजोर नहीं है, ईश्वर तेरी रक्षा करेंगे।”

माँ, बेटी को ट्रेन में बैठा कर नीचे उतर आई और स्टेशन पर एक बेंच पर बैठ गई। वह बेटे के सामने रोना नहीं चाहती थी। लेकिन अचानक फुट पड़ी रुलाई को वह रोक नहीं सकी। सीमा ने माँ को खिड़की से देखा। ट्रेन चल पड़ी थी। सीमा ट्रेन से उतर कर वापिस आ जाना चाहती थी। लेकिन उसके सर पर अब नसीहतों की भारी गठरी लदी थी। वह उस गठरी को छोड़कर उतर नहीं सकती थी।

सारे रास्ते वह आंसुओं के सैलाब को पोंछ कर मजबूत बनने की कोशिश कर रही थी, “अपनी लड़ाई स्वयं लड़ूंगी, अब मुझे खुद अपने पैरों पर खड़े होकर, अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा और संस्कार देकर इस संसार को दिखा दूंगी कि नारी कमजोर नहीं है।”

ससुराल आकर उसने ट्यूशन और सिलाई का काम शुरू किया। आज वह और उसके बच्चे बहुत मजबूत स्थिति में हैं और वे दूसरों के लिए प्रेरणा बन गए हैं।

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