लड़कियों में पीरियड्स या मासिक धर्म की शुरुआत आमतौर पर 9 से 16 साल की उम्र के बीच होती है। इस समय लड़की के शरीर में कई शारीरिक और हार्मोनल (hormones) बदलाव आते हैं, जो उसे किशोरावस्था से वयस्कता की ओर ले जाते हैं। पीरियड्स के दौरान हर महीने गर्भाशय(uterus) की परत हटती है, जिससे ब्लीडिंग होती है। यह प्रक्रिया शरीर के प्रजनन (Reproduction)के लिए सामान्य और जरूरी होती है, लेकिन पहली बार इसे अनुभव करना हर लड़की के लिए नया होता है। इस दौरान पेट में ऐंठन, पीठ दर्द, सिरदर्द, और थकान जैसी तकलीफें हो सकती हैं। ये शारीरिक बदलाव और दर्द कभी-कभी इतने असहज हो जाते हैं कि लड़की को अपनी दैनिक गतिविधियों में भी कठिनाई का सामना करना पड़ता है। इस समय उसे विशेष देखभाल और आराम की आवश्यकता होती है।
मासिक धर्म का असर लड़की की भावनाओं पर भी गहरा होता है। हार्मोनल बदलावों के कारण कई बार उसका मूड अस्थिर (mood swings)हो सकता है—कभी वह चिड़चिड़ी हो सकती है, कभी गुस्सा आ सकता है, तो कभी बिना कारण उदासी या भावनात्मक अस्थिरता महसूस कर सकती है। इसे प्रीमेंस्ट्रुअल सिंड्रोम (Premenstrual syndrome – PMS) कहते हैं, जो बहुत आम है और पीरियड्स से ठीक पहले या इसके दौरान होता है। इसके कारण पढ़ाई, दोस्तों के साथ संबंधों, और रोजमर्रा की गतिविधियों में भी असर पड़ सकता है। कई बार वह खुद को अकेला या अलग-थलग महसूस करती है। इस समय परिवार और दोस्तों का भावनात्मक समर्थन बहुत जरूरी होता है, ताकि लड़की को यह महसूस हो कि वह इस बदलाव में अकेली नहीं है और यह एक सामान्य प्रक्रिया है।
पीरियड्स के दौरान स्वच्छता और स्वास्थ्य का खास ध्यान रखना चाहिए। सैनिटरी पैड्स, टैम्पॉन, या मेंस्ट्रुअल कप का सही तरीके से और नियमित रूप से इस्तेमाल करना जरूरी होता है ताकि संक्रमण से बचा जा सके। इस समय शरीर को ऊर्जा देने वाले पौष्टिक भोजन का सेवन करना और पर्याप्त पानी पीना बहुत महत्वपूर्ण है। हल्की एक्सरसाइज करने से भी दर्द में राहत मिल सकती है। परिवार को चाहिए कि वे लड़की को प्रोत्साहित करें और उसे यह समझाएँ कि यह एक सामान्य शारीरिक प्रक्रिया है, जिसमें शर्माने या संकोच करने की कोई जरूरत नहीं है। परिवार और दोस्तों की सहानुभूति और मदद से वह इस बदलाव को आसानी से अपना सकती है और आत्मविश्वास के साथ जीवन में आगे बढ़ सकती है।