एक गांव में कृष्णा नाम का एक गृहस्थ रहता था। उसकी पत्नी का नाम शीतल था। उन्हें दो बेटे और दो बेटियां थीं। एक छोटा सुखी परिवार था।
कृष्णा ने अपना सब पैसा अपने बेटे और बेटियों की पढ़ाई, शादी और उनके लिए अच्छे घर बनाने में खर्च कर दिया। कृष्णा के बेटे और बहू स्वार्थी थे।
मां-बाप ने इतना सब किया था फिर भी कृष्णा को अपने बेटे-बहू के रहन-सहन पर जीना पड़ रहा था। उन दोनों को बेटों और बहुओं से बहुत ज्यादा हीनता और अपमान का बर्ताव मिलता था।
अचानक एक दिन कृष्णा की मृत्यु हो गई। उसकी मृत्यु से वह बेचारा तो इस दर्द से मुक्त हो गया, लेकिन शीतल मात्र अकेली रह गई। शीतल ऐसे ही उदास मनस्थिति में मंदिर गई। वहां उसे उसकी बचपन की सहेली शांता मिली। उसे देखकर शीतल को अच्छा लगा। शीतल को उदास देख शांता ने शीतल से उसकी उदासी का कारण पूछा।
शीतल ने अपने दुखी जीवन का सभी विवरण बताया। यह सब सुनकर शांता ने उसे गुप्त में कुछ कहा। वह सब सुनकर शीतल को थोड़ा सा आधार मिला।
दूसरे दिन सुबह, शांता के बताए अनुसार शांता एक बैग लेकर शीतल के पास गई और जैसे पहली बार मिल रही हो, ऐसा बर्ताव किया। शांता ने शीतल को गले लगा लिया।
शीतल ने शांता से पूछा, “शांता, तुम यहां हमारे गांव में कब आई और किसके घर ठहरी हो?” शीतल की आवाज सुनकर गंगा के दोनों बहू तुरंत बाहर आ गईं। शांता ने कहा, “अरे, मैं दूसरे घर पर कहां रहूं, हम दोनों मौसेरी बहनें हैं, तो भी सगी बहनों से ज्यादा हमारा रिश्ता अटूट है। मुझे जीजा जी के गुजरने की खबर मिली, इसलिए मैं तुम्हें मिलने और भेंट देने आई हूं।”
पहले दिन तय किए अनुसार शीतल बोली, “शांता, तुम मुझे मिलने के लिए आई, यह सुनकर बहुत अच्छा लगा, पर तुम मुझे भेंट देने के लिए कुछ लाई हो, उसका अर्थ मुझे समझ में नहीं आया।”
शांता जानबूझकर रोने का सुर निकालकर बोली, “अरे शीतल, मुझे पता है कि आपने और कृष्णा जी ने अपना सारा पैसा बेटे-बेटी की पढ़ाई, शादी और उनके लिए अच्छे घर बनाने में खर्च कर दिया। आपने खुद के लिए कुछ भी नहीं रखा। यह सब ठीक है क्योंकि आपके बेटे और बहू सभी अच्छे हैं, इसलिए वे आपसे प्यार से बर्ताव करते हैं। आपको अच्छे से संभालते हैं, इस पर मुझे पूरा भरोसा है।
लेकिन हमारे यहां सब उलटा है। हमारी आर्थिक स्थिति अच्छी होने के बावजूद, बेटे पढ़े नहीं, इस वजह से वे कोई उद्योग-धंधा नहीं करते। उन्हें सिर्फ बैठकर खाना आता है। अमीर होने के कारण उनकी शादी भी हो गई, लेकिन उनकी पत्नियां हमें बार-बार अपमानित करती रहती हैं और मेरे बच्चे कुछ नहीं बोलते।”
फिर शांता आंखें पोछने का नाटक करती है और आगे बोली, “अब ऐसी स्थिति में हम दोनों को जीने की इच्छा भी नहीं होती और अब हमारी जिंदगी भी कितनी बची है? इसलिए मैंने तय किया कि मेरे पति का नजदीकी कोई भी नहीं है और तुम्हारे सिवाय मेरा कोई नहीं है! इसीलिए सब पैसा बेटों को देने के बजाय तुम्हें आधे पैसे दे दूं!”
ऐसा विचार करके मैंने अपने पति की रजामंदी से 25 तोला वजन के 10-12 सोने के गहने और ₹50,000 इस बैग में लाई हूं। इस बैग में 45 हजार की नोटें हैं और 5,000 नाणे हैं। अभी तुम कुछ भी ना कहते हुए हमारा प्यार समझकर यह बैग और उसकी चाबी ले लो!
मैं सिर्फ तुम्हारे पास चाय पीकर तुरंत चली जाऊंगी।” शांता का यह बोलना सुनकर शीतल की बड़ी बहू प्यार का नाटक करके बोली, “क्या मासी, आप इतनी जल्दी क्यों जा रही हो? अभी आई हो तो हमारे घर 2-4 दिन रहो! आपके बेटे और बहू भी नई पीढ़ी के हैं, इस वजह से आप उनके बारे में ध्यान मत दीजिए। आप दोनों पति-पत्नी ने अपना जीवन यशस्वी किया है। वैसे ही हमें भी मार्गदर्शन दें तो अच्छा होगा और हमें भी समझ में आ जाएगा कि कैसे जीवन जीना है।”
तभी शांता बोली, “मेरे पति के दोस्त आज प्लेन से रात को 12:00 बजे हमारे घर आने वाले हैं, इस वजह से मुझे जाना होगा। हर एक मनुष्य की जिंदगी में ऐसा प्रसंग आता है, जिससे उसकी आंखें खुलती हैं और यदि वह समझदार होता है तो उसे मार्ग दिखता है।” ऐसा बोलकर शांता चाय पीकर वहां से चली गई।
शांता के जाने के बाद शीतल के बेटे और बहू ने उससे बहुत अच्छा बर्ताव करना शुरू कर दिया। बहुत प्यार और देखभाल करने लगे।
शीतल खाना खाने के बाद रात को अपने कमरे में जाकर दरवाजे की कुंडी लगा लेती। शांता द्वारा दिए गए पैसे पत्थर पर पीटकर बजाकर गिनती थी। नाणों का आवाज रात के समय स्पष्ट उनके बेटे और बहू को सुनाई देता था और उनका शीतल पर और ज्यादा प्यार बढ़ने लगता!
ऐसा पांच-छह महीने तक चलता रहा लेकिन पैसे गिनने का काम मात्र खत्म नहीं हो रहा था। यह सिलसिला शीतल ने अपने मरने तक चालू रखा। शीतल के आखिरी 6 साल खुशियों में बीते!
परंतु एक दिन अचानक शीतल की मृत्यु हो गई। उसके जाने के बाद, रिवाज और लोकलाज के लिए उसके बहू और बेटों ने आंसू बहाए। फिर उन्होंने स्मशान से लौटने के बाद तुरंत मां के कमरे में जाकर उस बैग का ताला खोला।
उनका धक्का लग गया, क्योंकि उसमें सिर्फ पुराने समाचार पत्र, चार-पांच वजनदार पत्थर और एक रुपया था। वह रुपया भी पत्थर पर पीटने पर पूरी तरह खराब हो गया था!
इस कहानी से हम सीखते हैं कि सच्चा प्यार और सम्मान पैसों से नहीं खरीदा जा सकता। कृष्ण और शीतल की selflessness और बलिदान की कहानी यह दिखाती है कि परिवार के प्रति आदर और सम्मान आवश्यक है। कहानी यह भी बताती है कि बाहरी आभूषणों और दिखावे के बजाय, वास्तविक मूल्य और सच्चाई पर ध्यान देना चाहिए। शांता द्वारा दी गई नकली संपत्ति से यह प्रमाणित होता है कि सच्चे रिश्ते और भावनाएं दिखावे से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हैं !