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Importance of right thinking at the right time: The story of a businessman
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सही समय पर सही सोच का महत्व: एक सेठ की कथा

विवाह के दो साल बाद, एक युवक ने अपने पिता से परदेस जाकर व्यापार करने की इच्छा जाहिर की। उसकी पत्नी गर्भवती थी, लेकिन अपने सपनों को पूरा करने के लिए उसने पत्नी को अपने माता-पिता के भरोसे छोड़कर विदेश जाने का निर्णय लिया। विदेश में उसने कठिन परिश्रम किया और बहुत धन अर्जित किया। 17 वर्षों के परिश्रम के बाद, जब वह संतुष्ट हुआ और घर लौटने का निश्चय किया, तो उसने अपनी पत्नी को पत्र लिखकर आने की सूचना दी और जहाज में सवार हो गया।

जहाज पर उसकी मुलाकात एक उदास व्यक्ति से हुई। व्यक्ति ने बताया कि वह ज्ञान के सूत्र बेचने आया था, लेकिन यहां किसी को ज्ञान की कद्र नहीं है। सेठ को यह सुनकर आश्चर्य हुआ और उसने कर्मभूमि का मान रखते हुए ज्ञान सूत्र खरीदने की इच्छा जताई। व्यक्ति ने कहा, “मेरे हर ज्ञान सूत्र की कीमत 500 स्वर्ण मुद्राएं है।”

यद्यपि सेठ को यह कीमत महंगी लगी, लेकिन उसने कर्मभूमि के सम्मान के लिए 500 मुद्राएं देकर पहला ज्ञान सूत्र खरीदा। व्यक्ति ने कहा, “कोई भी कार्य करने से पहले दो मिनट रुककर सोच लेना।” युवक ने उस सूत्र को अपनी किताब में नोट कर लिया और यात्रा जारी रखी।

कई दिनों की यात्रा के बाद, जब वह अपने नगर पहुंचा, तो उसने सोचा कि वह चुपके से अपनी पत्नी के पास पहुंचेगा। घर पहुंचते ही उसने द्वारपालों को चुप रहने का इशारा किया और सीधे अपनी पत्नी के कक्ष की ओर बढ़ा। अंदर जाकर उसने देखा कि पलंग पर उसकी पत्नी के पास एक युवक सोया हुआ था। क्रोध और आक्रोश से भरकर, उसने सोचा, “मैं परदेस में भी इसकी चिंता करता रहा, और यह यहां किसी और के साथ है!” उसने अपनी तलवार निकाल ली और वार करने ही वाला था कि अचानक उसे 500 स्वर्ण मुद्राओं से प्राप्त ज्ञान सूत्र याद आ गया—”कोई भी कार्य करने से पहले दो मिनट रुककर सोच लेना।”

उसने सोचने के लिए रुक गया। तलवार को वापस खींचते समय, वह एक बर्तन से टकरा गई और बर्तन के गिरने की आवाज़ से उसकी पत्नी की नींद खुल गई। जैसे ही उसकी नजर अपने पति पर पड़ी, उसकी आंखों में खुशी की चमक दौड़ गई। उसने कहा, “स्वामी, आपके बिना जीवन सूना था। आपके इंतजार में ये वर्ष कैसे निकाले, यह मैं ही जानती हूं।”

तब भी सेठ ने पलंग पर सोए युवक को देखकर अपना क्रोध नहीं दबा पाया। उसकी पत्नी ने युवक को उठाते हुए कहा, “बेटा, जागो। तुम्हारे पिता आए हैं।” युवक उठकर जैसे ही प्रणाम करने झुका, उसकी पगड़ी गिर गई और उसके लंबे बाल बिखर गए।

पत्नी ने मुस्कुराते हुए कहा, “स्वामी, ये आपकी बेटी है। आपके बिना इसकी मान-मर्यादा को कोई आंच न आए, इसलिए मैंने इसे पुत्र के समान पाल-पोषण और संस्कार दिए हैं।”

यह सुनकर सेठ की आंखों में आंसू आ गए। उसने अपनी पत्नी और बेटी को गले लगाते हुए सोचा, “अगर आज मैंने उस ज्ञान सूत्र को नहीं अपनाया होता, तो जल्दबाजी में कितना बड़ा अनर्थ हो जाता। मेरे ही हाथों मेरा निर्दोष परिवार समाप्त हो जाता।”

सेठ ने महसूस किया कि जिस ज्ञान सूत्र को उसने 500 अशर्फियों में खरीदा था, वह जीवन के किसी भी मूल्य से कहीं अधिक अनमोल था। उस ज्ञान ने उसकी जिंदगी को बर्बाद होने से बचाया और उसने समझा कि जीवन में सही समय पर सही सोच और धैर्य का कितना बड़ा महत्व होता है।

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