कई साल पहले की बात है, एक आश्रम में एक बड़े विद्वान गुरु अपने शिष्यों के साथ रहते थे। उनका शिक्षा देने का तरीका बहुत खास था—वे प्रैक्टिकल उदाहरणों के माध्यम से सिखाते थे।
एक शिष्य हमेशा दुखी रहता था। एक दिन गुरु ने उससे पूछा, “तुम हमेशा दुखी क्यों रहते हो?”
शिष्य ने उत्तर दिया, “गुरुजी, मेरे घर की आर्थिक स्थिति बहुत खराब है, परिवार में कोई न कोई बीमार रहता है, और मेरी पढ़ाई में भी मन नहीं लगता। मैं क्या करूँ?”
गुरु ने उसकी बातें सुनकर उसे एक गिलास में पानी और मुठ्ठी भर नमक लाने के लिए कहा। गुरुजी ने कहा, “अब इस नमक को पानी में डालो और इसे पीओ।”
शिष्य ने ऐसा किया और एक घूंट लेने के बाद उल्टी कर दी। उसने कहा, “गुरुजी, इसका स्वाद बहुत खराब है।”
फिर गुरु उसे पास के तालाब पर ले गए और वहां भी वही मुठ्ठी भर नमक डालने को कहा। शिष्य ने तालाब का पानी चखा और कहा, “गुरुजी, यह तो मीठा है!”
गुरुजी ने मुस्कुराते हुए कहा, “बेटा, तुम्हारी समस्याएँ उसी नमक की तरह हैं। यह इस बात पर निर्भर करता है कि तुम उन्हें कैसे संभालते हो। अगर तुम एक छोटे गिलास की तरह हो, तो थोड़ा सा दुख भी तुम्हारे जीवन को कड़वा बना देगा। लेकिन अगर तुम तालाब की तरह हो, तो कितने भी दुख आ जाएं, वे तुम्हें प्रभावित नहीं कर पाएंगे।”
सीख: “अपना नजरिया बदलो, ताकि तुम हर मुश्किल का सामना कर सको।” समस्याएँ और दुःख जीवन का हिस्सा हैं, लेकिन हमारी मानसिकता और दृष्टिकोण ही तय करते हैं कि वे हमें कितनी प्रभावित करेंगे। बड़े दिल और समझदारी से समस्याओं का सामना करने पर वे हल्की सी लगती हैं।