बीवी की इस मांग पर जेबें उल्टी करके दिखाने के सिवा बड़े भाई के पास कोई दूसरा उत्तर नहीं था। माथे पर चिंता की लकीरों के साथ सवेरे वह अपने काम पर निकल गया। लेकिन उस शाम उसने पूरे परिवार के सामने इस आर्थिक संकट को दूर करने के लिए एक प्रस्ताव रखा, “क्यों न हम उस प्लॉट को बेच दें जिसे बाबूजी ने लक्ष्मी की शादी के लिए खरीदा था?”
“बेटी को दी हुई चीज वापस नहीं मांगते, पाप लगता है। लक्ष्मी के जन्म के साथ ही घर खुशियों से भर गया था, तभी तुम्हारे बाबूजी ने तय कर लिया था कि ये प्लॉट लक्ष्मी का है, जो उसे उसकी शादी में दे दिया जाएगा।”मां ने अपना विरोध जताते हुए कहा।
“कौन सी बेटी? वो बेटी जो प्रेम विवाह कर घर की इज्जत को खाक में मिला गई और पिताजी की अंतिम यात्रा में भी शामिल नहीं हुई!” बड़े ने तंज मारते हुए कहा।
“मेरा मुंह मत खुलवाओ। कौन नहीं जानता कि लक्ष्मी को उस दिन गली के मोड़ से ही लौटा दिया गया था और उससे अपने पिता से आखिरी बार मिलने का हक भी छीन लिया गया था!”मां ने बेटी का पक्ष लेते हुए कहा।
मां के इस वार से दोनों बेटे चुप हो गए। ना बड़ा बेटा कुछ बोल पाया, ना छोटे बेटे के मुंह से कोई शब्द निकला।
थोड़ी देर की शांति के बाद छोटा भाई बोला “प्लॉट बेच तो देंगे पर क्या लक्ष्मी कागजात पर दस्तखत करेगी? मुझे नहीं लगता कि वो हमारा भला सोच भी सकती है! आखिर है तो औरत जात! पुरुषों की परिस्थिति कैसे समझ पाएगी?
काफी वाद-विवाद और सोच-विचार के बाद सब इस बात पर सहमत हुए और पड़ोस की लक्ष्मी की दोस्त को बोलकर लक्ष्मी को घर आने का न्योता दे दिया गया।
अगले दिन सुबह से ही गली के मोड़ पर खेल रहे बड़े भाई के बेटे की बुआ आ गई बुआ आ गई”की आवाज सुनकर घरवाले चौकन्ने हो गए। दोनों भाई मन में द्वेष और नफरत लिए इस दुविधा में थे कि उसे घर में कैसे बुलाएं। वो कहते हैं ना “जरूरत के वक्त गधे को भी बाप बनाना पड़ता है” उसी कहावत के हिसाब से दोनों भाई बहन से बात करने के लिए तैयार हुए।
दरवाजे पर जब बेटी और दामाद ने पूरे 7 साल बाद कदम रखा तो मां की आंखें भर आईं और दोनों को बड़े प्यार से घर के अंदर लेकर आईं। बेटी और दामाद भी मां का इतना स्नेह देखकर भावविभोर हो गए।
शाम को साथ बैठकर बेटी, दोनों बेटों और दामाद के आगे हिचकिचाते हुए मां ने ही प्लॉट का मुद्दा उठाया।
लक्ष्मी को थोड़ा अंदेशा था कि कोई बड़ी बात होगी। लक्ष्मी उसी दिन से सोच रही थी कि ऐसी क्या बात हो सकती है जो खड़ूस भाई उसे बाप का मुंह दिखाने के खिलाफ थे, वो अचानक इतने कैसे पिघल गए! लेकिन अब उसे सारी बात समझ में आ गई।
लक्ष्मी ने तिरछी नजर से पति की तरफ देखा तो वो बोल पड़ा, “देखिए माजी, शादी से पहले जो कुछ आपका था, वो आप ही का रहेगा। ना उस पर मेरा या लक्ष्मी का कोई हक था, ना है, ना भविष्य में हम मांगेंगे। इसलिए आप निश्चित होकर उस प्लॉट के साथ जो करना है कीजिए। आप जहां कहेंगे, हम वहां साइन कर देंगे।”
सुबह से अपने जीजा से नजरें चुरा रहे दोनों भाइयों ने अब अपने जीजा को अच्छे से देखा। सुबह प्लॉट के कागजात पर बहन के दस्तखत लेकर काम खत्म करने की योजना बनी।
सब इस मीटिंग को खत्म कर उठ ही रहे थे कि टीवी पर अनाउंसमेंट हुआ कि आने वाले 21 दिनों तक देश में लॉकडाउन लगाया जा रहा है। लक्ष्मी के पति ने फोन पर बात करने के बाद कहा, “अब हम क्या करेंगे लक्ष्मी? कल की बस भी रद्द हो गई है और 21 दिनों तक कोई बस नहीं है, हम तो फंस गए।”
इस खबर से दोनों भाई बहुत निराश हो गए, क्योंकि एक तो उनकी आमदनी कम थी और दो लोगों का और खाने-पीने का बोझ बढ़ गया था। लेकिन मां अंदर ही अंदर खुश थी, क्योंकि इतने बरसों बाद घर वापस लौटी बेटी इसी बहाने कुछ दिन आराम से उसके साथ रह पाएगी।
दोनों भाई छोटी सब्जी और फल बेचा करते थे। कुछ दिनों में ही लॉकडाउन और कोरोनावायरस के चलते लोगों ने उनसे सब्जियां और फल खरीदना बंद कर दिया। पहले से खराब उनकी आर्थिक स्थिति और ज्यादा खराब होने लगी और वो मन ही मन लक्ष्मी के कदमों को अशुभ मानने लगे।
बहन और जीजा जी से उनकी यह हालत छुपी नहीं रही। लक्ष्मी के कहने पर उसके पति ने दोनों भाइयों की सब्जी और फल की रेडियो पर लोहे की रॉड और जालियां फिट कर दीं। बाजार जाकर दोनों के लिए कैप, हाथों के दस्ताने और थोक के भाव से सब्जी और फल खरीद लाए।
दोनों की रेडियां अच्छे से तैयार कर फल और सब्जियां ढक कर दोनों भाइयों को टोपी और दस्ताने देकर जीजा जी ने उनसे कहा, “एक बार इस तरह से धंधा करके देखो, शायद आपका मुनाफा बढ़ जाए।
थोड़ी आनाकानी के बाद दोनों भाइयों ने जीजा जी के समझाए अनुसार धंधा शुरू किया। दो-तीन दिनों बाद ही कोरोना से घबराए लोग अब ढकी हुई फल और सब्जियां, और दस्ताने व सेफ्टी का ध्यान रखते हुए बेचने वालों से ही फल और सब्जियां खरीदने लगे।
इस तरह समझदार दामाद की वजह से धीरे-धीरे दोनों भाइयों का धंधा अच्छा चलने लगा और उनके घर का गल्ला, जो पहले खाली हो रहा था, अब धीरे-धीरे भरने लगा। मां जैसे अपने मरे हुए पति से मन ही मन संवाद साधने लगी “देखो जी, आपकी लक्ष्मी सच में लक्ष्मी है। उसके पांव घर में पड़ते ही घर खुशियों से भर गया है।
दोनों भाइयों की आंखों में पहले जो गुस्सा था, उसकी जगह अब शर्म ने ले ली थी। वो मन ही मन सोचते थे, “क्या गलत किया था बहन ने जो हमने उसके साथ इतना बुरा सुलूक किया? शादी ही तो की थी, और शादी करने से पहले हमें बताया भी तो था। हम ही थे जो उसे स्वीकार नहीं कर पाए।”
दोनों भाइयों के मन में द्वेष और नफरत धीरे-धीरे क्वॉरेंटीन हो गए। 21 दिन बाद जब दीदी और जीजाजी प्लॉट के कागजों पर साइन करने जाने लगे, तब दोनों भाइयों ने उन्हें रोक लिया और माफी मांगते हुए वो पेपर्स उन्हें देते हुए बोले, “शादी के वक्त हमने आपको कोई तोहफा तो दूर की बात है, आपका हक भी नहीं दिया। लेकिन अब इस प्लॉट को स्वीकार कर हमें प्रायश्चित करने का एक मौका दीजिए।”
सभी की आंखों में खुशी के आंसू आ गए और मां ऊपर देख कर बोली, “देखा, आपकी लाडली ने आज फिर हमारा घर खुशियों से भर दिया!”