बहू रानी! अपनी मम्मी जी को फ़ोन पर बता देना कि हमारे परिवार में पहले बच्चे के जन्म पर सभी ननदों के लिए साड़ी के साथ-साथ हीरा या सोने की अंगूठी जरूर आती है। वैसे, तुम्हारे बड़े ताऊजी की बड़ी बहू के घर से सबके कंगन आए थे।” मंझली ताई जी ने कहा।
अब ननद एक ही होती तो मम्मी जी से कह भी देती, लेकिन ताऊ-चाचा मिलाकर पांच ननदें; मेरे परिवार में अकेले पापा कमाने वाले, अनेक खर्च—किसी तरह शादी की, भाई इंजीनियरिंग कर रहा है, मुझे पता होता कि बच्चा होने पर भी मायके वालों को ही नोंचा जाएगा, तो बच्चा ही ना पैदा करती। मैं मन ही मन बिलख पड़ी।
मैंने अपनी हीरे की अंगूठी सासू माँ को देकर कहा, “मम्मी जी! जो गहने आपके पास हैं, मेरे सभी गहनों के बदले में, अपने परिवार की महिलाओं के लिए जो आप देना चाहती हैं, ले आइए, पर प्लीज़ मेरे मम्मी-पापा से छूछक के नाम पर गहने माँगने के लिए मत कहना।”
“खबरदार, बहू रानी, जो हमारे प्यार की सौगात अंगूठी देने की बात कही, या गहने बेचने की। मैं बैठी हूँ ना। तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं। खूब आराम करो। जच्चा-बच्चा हँसते हुए दिखाई देने चाहिए हमें बस।”
कुआं पूजन के दिन भाई छूछक का सामान लेकर आया। पड़ोसी और रिश्तेदारों से पूरा घर भरा था। भाई नवजात शिशु को देखकर निहाल हो रहा था, लेकिन मुझे यही चिंता सता रही थी कि अब पूरा खानदान इकट्ठा होगा और यही पूछेगा कि छूछक में क्या आया?
सासू माँ मुझे स्टोर रूम में ले गई और मुझे पीले रंग की बनारसी साड़ी पहनने के लिए देते हुए कहा, “मम्मी जी लेकर आई हैं, खूब खिलेगी तुम पर। ये साड़ियाँ ननदों के लिए हैं।” फिर उन्होंने दिखाने के लिए सामान रखना शुरू किया तो मेरी आँखें ही चौंधिया गईं—सारे खानदान के कपड़े, चाँदी के बर्तन, खिलौने, सभी बेटियों के लिए अंगूठियाँ और मेरे लिए हीरे जड़ित प्यारी सी चैन।
सासू माँ चहकती हुई सबको दिखा रही थी। उत्सव के बाद मैंने भाई से कहा, “यह सब कैसे?”
“बहन! मैं तो एक सूटकेस लाया हूँ बस, जो भी सामान है, बस उसी में है। वह आंटी जी को दिया है। ना उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या लाया है और ना मैंने बताया।”
तभी सासू माँ ने दुलारते हुए कहा, “बिटिया! कुटुंब से लिया है; तो देना ही पड़ता है। मैंने वह सामान भी इसके बीच में सजा दिया है। उन्होंने बहुत अच्छा दिया है, लेकिन यह कुटुंब इतना बड़ा है कि कोई कितना देगा। मैं अपने हिसाब से खरीद लाई हूँ। और लाड़ो! जितना यह मेरा घर, परिवार है, उससे अधिक अब तुम्हारा है। तुम्हें जहाँ भी, जो भी लेना-देना करना हो, तो इस मम्मी जी को इशारा भर कर देना। तुम्हारे भाई और तुम्हारी बुआ के लड़के के लिए भी गर्म सूट खरीद कर लाई हूँ। आखिर लाड़ो! तुम्हारा सम्मान भी तो हमारा ही सम्मान है। और कुछ करना है तो बता दीजिए।”
“हाँ मम्मी जी! थोड़ा बदलाव चाहिए, स्वर्ण जड़ित चैन मुन्ने की दादी माँ के गले में अच्छी लगेगी। मेरे लिए तो ऐसे खानदान की बहू बनना ही सबसे बड़ी खुशी है।” कहते हुए प्यार और खुशी में आँखें छलक आईं। और मम्मी जी ने गले लगा लिया।