भगवान सूर्य और षष्ठी माता की आराधना का महापर्व छठ पूजा इस साल 5 नवंबर, रविवार से शुरू होने जा रहा है। यह पर्व चार दिनों तक मनाया जाएगा, जिसमें भक्त पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ व्रत करेंगे। छठ पूजा का विशेष महत्व है और इसे विशेष रूप से उत्तर भारत में मनाया जाता है। इस पर्व का उद्देश्य सुख, समृद्धि और मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए सूर्य देव की कृपा प्राप्त करना है।
छठ पूजा की विधि:
छठ पूजा की शुरुआत नहाय-खाय से होती है, जो इस महापर्व का पहला दिन है। इस दिन भक्त विशेष ध्यान रखते हैं कि वे स्नान कर नए वस्त्र पहनें और गुड़ एवं चावल का प्रसाद तैयार करें। इस दिन नमक का सेवन नहीं किया जाता है, और भक्त सुबह से लेकर शाम तक विशेष आस्था के साथ पूजा करते हैं।
दूसरे दिन, खरना, व्रतधारी पूरे दिन उपवास रखते हैं और शाम को पूजा करके प्रसाद ग्रहण करते हैं। इस दिन गुड़ और चावल से बनी खीर का विशेष महत्व होता है। यह प्रसाद उनके व्रत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है, जो श्रद्धा और भक्ति के साथ बनाया जाता है।
तीसरे दिन, छठ पूजा का मुख्य दिन, व्रतधारी डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के लिए तत्पर होते हैं। इस दिन व्रत करने वाला व्यक्ति पूरे दिन निर्जल और निराहार रहता है। ठेकुआ, जिसे छठ पूजा का प्रमुख प्रसाद माना जाता है, इस दिन तैयार किया जाता है। संध्या को सूर्य को अर्घ्य देने के बाद, व्रतधारी रात्रि में भी निर्जल रहते हैं।
अंतिम दिन, सप्तमी तिथि (8 नवंबर) को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ छठ व्रत का समापन होता है। इस दिन भक्त उगते सूर्य को जल अर्पित करते हैं और उनकी कृपा प्राप्त करने की प्रार्थना करते हैं। अर्घ्य देने के बाद, प्रसाद का वितरण किया जाता है और परिवार में खुशियाँ मनाई जाती हैं।
इस पर्व में व्रत करने वाले व्यक्तियों को कठोर नियमों का पालन करना होता है। 36 घंटे तक निर्जल रहना और उपवास रखना इस पर्व की कठिनाई को दर्शाता है। भक्तों का मानना है कि इस कठिन तप से उन्हें सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। छठ पूजा का यह पर्व न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व भी रखता है।