बुजुर्ग श्रीकांत जी छत पर बिछाए गद्दे पर लेटे हुए आकाश में चांद और तारों को देख रहे थे। उम्र के इस पड़ाव पर नींद में परेशानी होना आम हो चुका था। उनकी धर्मपत्नी सुनीता जी भी इसी स्थिति से गुजर रही थीं। उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी रिटायरमेंट के पैसे लगाकर एक सुंदर घर बनाने में लगाई थी, ताकि बुढ़ापे में पति-पत्नी और बच्चों के साथ शांति से समय बिता सकें। लेकिन जब से बेटों की शादियाँ हुईं और उनके बच्चे हुए, घर का माहौल बदल गया।
श्रीकांत जी ने सुनीता जी की हाथ को गाल पर महसूस किया और उनसे पूछा, “क्या आज फिर बच्चों ने कुछ अपमानजनक कहा?” सुनीता जी ने चुप्पी साधी, लेकिन उनके आँसू उनके हाथ को गीला कर रहे थे। सुनीता जी ने बताया कि कई दिनों से बेटे-बहू देर तक चुपचाप बातें कर रहे हैं, और वे जानना चाहती थीं कि इसके बारे में श्रीकांत जी को कुछ पता है या नहीं। श्रीकांत जी ने कहा कि चिंता मत करो, जब तक मैं हूं, सब ठीक रहेगा।
दो दिन बाद, श्रीकांत जी के दोनों बेटे उन्हें बताते हैं कि उन्होंने तय किया है कि वे घर बेच देंगे। उनका कहना था कि घर अब छोटा पड़ता है और पुराने होने के कारण इसे बदलना जरूरी है। इसके बदले, वे नए फ्लैट लेंगे और घर बेचने की रकम को बांट लेंगे। बुजुर्ग दंपति चुपचाप सुनते रहे, और यह समझ में आ गया कि लंबे समय से चल रही बातचीत का मुद्दा यही था।
बड़ी बहू ने पेशकश की कि वे एक प्रोफेशनल ओल्ड एज होम में चले जाएं, जिसमें पांच सितारा होटल जैसी सुविधाएं होंगी। उसने यह भी कहा कि घर बेचने से मिली रकम उनके खाते में जमा कर दी जाएगी, और जरूरत पड़ी तो पैसे मांगे जा सकते हैं। श्रीकांत जी और सुनीता जी ने उनके चेहरों पर पढ़ा कि यही उनका अंतिम निर्णय है, लेकिन वे चुप रहे।
छोटे बेटे ने भी कहा कि खर्चों के मद्देनजर पैसे जमा करना जरूरी है, और इससे उनके परिवार की वित्तीय स्थिति बेहतर होगी। श्रीकांत जी ने सोचा और कहा कि उनका आइडिया अच्छा है, लेकिन वे घर बेचकर एक आश्रम खोलना चाहते हैं।
“मुझे पांच सितारा ओल्ड एज हाउस का आइडिया अच्छा लगा… सुनीता के गहने बेचकर, कुछ रकम लगाकर इसी घर में खोल दूंगा,” श्रीकांत जी ने निर्णय सुनाया। “तुम सब कल यह मकान छोड़कर चले जाना।”
सभी बेटे और बहुएं सिर झुका कर खड़े थे। रात को श्रीकांत जी और सुनीता जी हाथ में हाथ डालकर चांद की रोशनी में सोए। दोनों के चेहरों पर पहली बार असीम शांति थी।