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"जायदाद के बंटवारे के बीच, एक पिता का अनमोल संदेश"
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माता-पिता का सम्मान और जिम्मेदारी: एक किसान की सीख

“माता-पिता की देखभाल: संपत्ति से ज्यादा महत्वपूर्ण जिम्मेदारी”
“पिता की जायदाद और बेटे: परिवार के रिश्ते का मूल्य”
“माता-पिता की सच्ची कदर: एक किसान की कहानी”

जब बेटा पैदा होता है तो माता-पिता के लिए उससे बड़ी खुशी का दिन और कोई नहीं होता। उन्हें लगता है कि अब उनके सारे दुखों का समाधान हो जाएगा और उनका बेटा उनकी बुढ़ापे का सहारा बनेगा। लेकिन कुछ बेटे ऐसे भी होते हैं…

एक किसान के चार बेटे थे। चारों का विवाह हो चुका था। आज पिता की जायदाद को बांटने के लिए चारों भाइयों ने पंचायत बुलाई थी। सरपंच पिता से बोले, “आपके चारों बेटे चाहते हैं कि आपकी जायदाद के चार हिस्से कर दिए जाएं और आप तीन-तीन महीने के हिसाब से हर बेटे के पास रहेंगे। आप इनकी बातों से सहमत हैं ना?”

बड़ा बेटा बोला, “अरे सरपंची, इसमें पिताजी से क्या पूछना? हम चारों भाई इन्हें तीन-तीन महीने साथ रखने के लिए तैयार हैं। आप इनकी जायदाद का बंटवारा करिए।”

अभी तक सर झुकाए चुपचाप बैठे पिता अचानक चिल्लाकर बोले, “सुनो सरपंच, फैसला तुम नहीं, मैं करूंगा और मेरा फैसला है कि इन चारों को मैं बारी-बारी से अपने घर में तीन-तीन महीने साथ रखूंगा। बाकी का समय वे अपने-अपने घरों में रहेंगे। दुनिया के सभी औलादों को मेरा सीधा संदेश है कि मां-बाप हैं तो आप हैं। उन्होंने ही आपको पैदा किया, आपकी परवरिश की, ना कि आपने मां-बाप की।”

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