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20 मार्च, “विश्व गौरैया दिवस”

हर साल 20 मार्च को “विश्व चकली दिवस” ​​​​मनाया जाता है। यह पक्षियों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए मनाया जाता है। कई जानवरों और प्राणियों की तरह, पक्षी हमेशा मानव जाति से जुड़ा रहा है। गौरेया की आवाज भी सबसे खूबसूरत होती है। कंठ में सरस्वती विराजमान यह अद्भुत पक्षी आज कम ही देखने को मिलता है। यह एक ऐसा पक्षी है जो पिछले दस-बारह सालों में हर जगह पाया जाता था, लेकिन अब इसकी प्रजाति विलुप्त होती जा रही है। इसके लिए इसकी सुरक्षा करना जरूरी है। पक्षियों में नर पक्षी और मादा पक्षी दोनों हैं

नर पक्षी की पीठ धूसर, दाढ़ी और मूंछ पर काले धब्बे और लंबी और नुकीली काली चोंच होती है। प्रकृति की बात करें तो नर पक्षी बहुत उतावला होता है और गुस्सैल स्वभाव के कारण वह सोचने की क्षमता इस हद तक खो देता है कि वह आईने में अपनी परछाई से झगड़ने लगता है।

जब भी ये लड़ाई में शामिल होते हैं, इन्हें आसानी से पकड़ा जा सकता है। पक्षी अपना घोंसला घास के रेशों और मुलायम पंखों से बनाता है। यह आमतौर पर एक पेड़ या दीवार में एक छेद के अंदर अपना घोंसला बनाता है। वह अपने घोंसले में 4 से 6 अंडे देती है जो सफेद और अंडाकार होते हैं। उनके बच्चे पूरे 18 दिनों के बाद निकलते हैं। गौरैया एक शाकाहारी पक्षी है, यह ज्यादातर अनाज खाती है।

गौरैया पेड़ों में घोंसला नहीं बनाती बल्कि हमेशा इंसानों की बस्ती में रहती है।इस लुप्तप्राय प्रजाति को बचाने के लिए जरूरी है कि इनके घोंसलों का निर्माण किया जाए ताकि इनकी सुरक्षा के लिए इन्हें घर में ही संरक्षित किया जा सके। पक्षियों के लिए घोंसला तैयार करने के लिए एक डिब्बे का प्रयोग करना चाहिए जिसमें 1.5 इंच व्यास का छेद बना देना चाहिए। पक्षियों की विभिन्न सुंदर प्रजातियों की रक्षा के लिए सभी मानव जाति को मिलकर काम करना चाहिए।
इसके लिए हम पक्षी के लिए घर बना सकते हैं और उसके रहने की व्यवस्था कर सकते हैं साथ ही अपने घर में प्रतिदिन पक्षियों के लिए भोजन पानी की व्यवस्था कर सकते हैं। गौरैया का पसंदीदा भोजन कंग, चावल और बाजरा है। हमारा छोटा सा प्रयास कई गौरैयों की जान बचा सकता है।

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