एक सुबह, जब मैं घर के काम में व्यस्त थी, मेरा फ़ोन बज उठा। दूसरी ओर मेरी सहेली ने जब शब्दों के बजाय केवल रोते हुए अपनी बेटी मीनू के बारे में कुछ बोलना शुरू किया, तो मेरे दिल में एक अनजान डर ने घर कर लिया। मैंने उससे सीधे पूछा, “रचना, क्या हुआ? कुछ बताएगी भी या सिर्फ रोएगी?”
वह घबराई हुई आवाज़ में बोली, “मैं सिटी हाॅस्पिटल में हूँ। मेरी मीनू… उसने नींद की गोलियाँ खा ली हैं।” यह सुनकर मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई। मेरी धड़कनें तेज हो गईं, और मैंने बिना समय गवाएं, तुरंत हाॅस्पिटल जाने का फैसला किया।
जैसे ही मैं हाॅस्पिटल पहुंची, रचना मेरे गले लगकर फूट-फूटकर रो पड़ी। उसकी आँखों में दर्द और पछतावे की एक गहरी छाया थी। मैंने उसे चुप कराते हुए पानी का गिलास दिया और पूछा, “लेकिन मीनू ने ऐसा कदम क्यों उठाया? आखिर क्या हुआ?”
रचना ने भारी मन से अपनी कहानी शुरू की, “मेरी किटी-पार्टी की सभी महिलाएँ बहुत मॉडर्न थीं। वे हमेशा अपनी बेटियों के बाॅयफ्रेंड्स और उनके साथ की गई पार्टियों के बारे में बातें करती थीं। उनके सामने मुझे बहुत शर्म आती थी कि मेरी बेटी मीनू का कोई बॉयफ्रेंड नहीं है। मैंने भी सोचा, क्यों न अपनी बेटी को भी इस ‘आधुनिकता’ की दौड़ में शामिल कर दूं।”
उसने गहरी सांस ली और फिर बताया, “मैंने अपनी ननद से सलाह ली, तो उसने कहा कि मीनू को थोड़ा बन-संवर कर काॅलेज भेजो, लड़कों से दोस्ती करने के लिए प्रेरित करो। मैंने उसकी बात मानी और मीनू को नए फैशन के टॉप और जींस लाकर दिए। जब उसने इन कपड़ों को पहनने से मना किया, तो मैंने उस पर दबाव डालकर उसे पहनने के लिए मजबूर किया। मैंने उस पर यह भी जोर डाला कि वह लड़कों से मेलजोल बढ़ाए। धीरे-धीरे, मीनू ने एक लड़के, अंकित, से दोस्ती कर ली। अंकित उसे महंगे-महंगे गिफ्ट देने लगा, और मीनू उसकी दीवानी हो गई।”
रचना ने अपने आंसू पोंछते हुए कहा, “मैं खुद को खुशकिस्मत मानने लगी कि मेरी बेटी अब ‘मॉडर्न’ हो गई है। मैंने गर्व से किटी पार्टी में अपनी सहेलियों को मीनू और अंकित की दोस्ती के बारे में बताना शुरू किया। लेकिन मीनू के बदलते व्यवहार को देखकर मेरे पति ने मुझे चेतावनी दी कि बेटी की लगाम कसो, वरना अनर्थ हो सकता है। मगर मैंने उनकी बात को नजरअंदाज कर दिया।”
रचना का चेहरा अब पूरी तरह से गमगीन था। वह बोली, “कुछ दिनों से मेरी मीनू बहुत उदास रहने लगी थी। जब मैंने उससे कारण पूछा, तो उसने बताया कि अंकित काॅलेज नहीं आ रहा है। मेरे दिल में एक अनजान डर घर कर गया। मीनू ने रुंधे हुए गले से बताया कि एक पार्टी में अंकित ने उसे शराब पिला दी थी और उसके साथ कुछ ऐसा किया, जिससे वह अब…।” रचना की आवाज में घुटन थी। वह पूरी तरह टूट चुकी थी।
मुझे उसकी बात सुनकर ऐसा लगा जैसे मेरी भी धड़कनें रुक गई हों। इससे पहले कि रचना कुछ कर पाती, मीनू ने यह कदम उठा लिया था।
उसके बाद डॉक्टर आकर रचना से बोले, “साॅरी, मैं मीनू को नहीं बचा सका।”
रचना अपने पति के सीने से लगकर फूट-फूटकर रोने लगी। वह खुद को कोसने लगी, “आधुनिकता की होड़ में मैंने अपनी बेटी को खो दिया। मैंने खुद उसे इस आग में झोंका।”
रचना के चेहरे पर पछतावे की लकीरें साफ दिखाई दे रही थीं। उसकी आँखों में एक ही सवाल था: क्यों? क्यों मैंने अपनी बेटी को इस राह पर चलने के लिए मजबूर किया?
मैं उसे क्या सांत्वना देती, जब खुद मेरी माँ ने मेरी छोटी बहन के साथ यही किया था। आज भी मेरी माँ पछतावे के आंसू बहाती हैं, और यह सोचकर डर जाती हैं कि उनकी बेटी को उन्होंने इस आग में झोंक दिया।
यह कहानी केवल रचना या मेरी माँ की नहीं है, बल्कि उन सैकड़ों, हजारों परिवारों की है जो पश्चिमी संस्कृति की चकाचौंध में अपनी बेटियों को खो रहे हैं। हमारी बेटियों की मासूमियत, उनकी इच्छाएँ, उनकी ज़िन्दगी, इस आधुनिकता की अंधी दौड़ में कहीं खोती जा रही हैं।
अब समय आ गया है कि हम सोचें, समझें और बदलाव की दिशा में कदम उठाएं, ताकि भविष्य में कोई और माँ अपनी बेटी को खोने का दर्द न झेले, और हमारी बेटियाँ सुरक्षित और खुशहाल जीवन जी सकें।