एक दिन एक बूढ़ा आदमी जंगल में टहल रहा था, तभी अचानक उसने देखा कि एक छोटी सी बिल्ली एक छेद में फंस गई है।
बेचारी बिल्ली बाहर निकलने के लिए जी-तोड़ संघर्ष कर रही थी। बूढ़े आदमी को उस पर बहुत दया आई, तो उसने उसे बाहर निकालने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया। लेकिन बिल्ली ने उसके हाथ को अपने नाखूनों से खरोंच दिया।
बूढ़े आदमी ने डरकर अपना हाथ पीछे खींच लिया, उसका हाथ खून और दर्द से भर चुका था और उसके मुंह से चीख निकल गई। लेकिन फिर भी वह रुका नहीं। उसने बार-बार बिल्ली की मदद करने की कोशिश की। हर बार बिल्ली उसे खरोंचती या गुर्राती, फिर भी वह बूढ़ा आदमी अपनी कोशिश में जुटा रहा।
यह सारी घटना एक और आदमी दूर से देख रहा था और आश्चर्यचकित था। काफी देर तक यह सब देखने के बाद उससे रहा नहीं गया और वह चिल्लाते हुए बोला, “अरे मूर्ख आदमी, उस जानवर की सहायता करना बंद करो। वह अपने आप किसी तरह से वहां से निकल जाएगी। क्यों खुद को हानि पहुंचा रहे हो?”
बूढ़े आदमी ने इन बातों की परवाह नहीं की और उसने उस बिल्ली को बचाने की कोशिश जारी रखी, जब तक कि वह आखिरकार सफल नहीं हो गया। फिर वह उस आदमी के पास गया और कहा, “बेटा, यह बिल्ली की प्रवृत्ति है कि वह मुझे खरोंचती है और चोट पहुंचाती है। लेकिन मेरी प्रवृत्ति, एक इंसान होने के नाते, यह है कि सबको प्यार करना, सबकी देखभाल करना और हमेशा सम्मान और दया का व्यवहार करना।”
कहानी का सारांश
हम यह उम्मीद नहीं कर सकते कि अन्य लोग हमसे वैसा ही व्यवहार करें जैसा हम चाहते हैं, क्योंकि हम यह नियंत्रित नहीं कर सकते कि वे किसी स्थिति में कैसे प्रतिक्रिया देंगे। लेकिन हम खुद को नियंत्रित कर सकते हैं और अपने व्यवहार में प्रेम, दया और परोपकार की भावना को ला सकते हैं।