“भाई की गलती का परिणाम: बहन ने साबित किया कि सच्ची बहन क्या होती है”
मैं अपनी बहन को ज्यादा पसंद नहीं करता था। उसकी शादी हो चुकी थी, लेकिन मैं कभी उसके घर नहीं गया। बस माता-पिता ही उसे मिलने जाते थे। मुझे पता भी नहीं था कि वह किस हाल में है। वह कभी-कभी मायके आती तो जाते समय मेरी माँ उसे घर का कुछ सामान भी दे देती। यह बात मेरी पत्नी को बिल्कुल पसंद नहीं थी। जब भी मेरी माँ ऐसा करती, मेरी पत्नी आकर मुझसे शिकायत करने लगती कि “तुम्हारी माँ तुम्हारी कमाई कैसे उड़ा रही है? जब भी तुम्हारी बहन आती है, उसे खाली हाथ जाने ही नहीं देती। कुछ ना कुछ जरूर देती है। तुम अपनी माँ को बता दो कि यह सब नहीं चलेगा।”
पत्नी की बातें सुनकर मुझे भी गुस्सा आ गया। मैं माँ के पास गया और कहा, “क्यों देती रहती हो उसे? मेरी कमाई को ऐसे दूसरों में उड़ा दोगी, तो तुम्हें भी घर से निकाल दूंगा।” बहन ने मेरी और माँ की बातें सुन लीं। एक घंटे बाद बहन मेरे कमरे में आई और कहने लगी, “भाई, जरा रिक्शा ला दोगे? मुझे अपने घर जाना है।”
बहन की बात सुनकर मैं मन ही मन में बहुत खुश हुआ, लेकिन दिखावे के लिए बहन से कहने लगा, “थोड़े दिन और रुक जाती।” नहीं भैया, बच्चों के स्कूल की छुट्टियां खत्म हो गई हैं, अब मुझे घर जाना है। कल से उनकी स्कूल शुरू हो जाएगी। फिर वह चली गई।
पिताजी के मरने के बाद जब घर का बंटवारा हुआ, तो हम दोनों भाइयों ने आपस में ही बंटवारा कर लिया। लेकिन उसमें से भी बहन को कुछ नहीं दिया। हमने माँ की एक ना सुनी और माँ को डरा-धमकाकर चुप कर दिया। अब बेचारी विधवा औरत अगर हम उसे घर से निकालते, तो वह कहाँ जाती? इसलिए चुप हो गई। भाई साहब ने अपना हिस्सा बेचकर शहर जाकर नया काम शुरू कर दिया और वहीं रहने लगे।
हमने अपनी बहन के साथ जैसा व्यवहार किया था, उसकी सजा तो हमें मिलनी ही थी। भाई साहब का कारोबार बर्बाद हो गया और वह मजदूरी करके अपना पेट पालने लगे। मेरे बड़े बेटे को भी टीबी हो गई। उसके इलाज में लाखों रुपए खर्च हो गए। जो भी मेरे पास था, सब कुछ खत्म हो गया और मुझे कर लेना पड़ा। हाल इतना बुरा हो गया।
बड़े दिनो बाद मेरी बहन मेरे बीमार बेटे से मिलने आई!
बहन को देखकर मैं भी गुस्सा हो गया, लेकिन अपने गुस्से को दबा लिया। वह मेरे बच्चे के पास गई, उसे देखा और फिर मेरे पास आकर बोली, “मेरे भाई, क्या तुम परेशान हो?” यह कहते हुए उसने मेरे सर पर हाथ फेरा। “बड़ी बहन हूं तुम्हारी, तुम मेरी गोद में खेले हो। अब देखो, अपनी बहन से भी बड़े हो गए हो कि अपनी बहन को कुछ नहीं बताते, अपना दुख भी नहीं बताते।” यह कहते हुए उसने अपने सोने के कंगन निकाले और मेरे हाथ में रख दिए। “मेरे भाई, परेशान ना हो। यह कंगन बेच दो, अपने घर का राशन भर दो, अपने बच्चे का इलाज भी करवा लो। और पैसों की जरूरत हो तो कह देना।”
मैं आश्चर्यचकित होकर बहन को देखे जा रहा था। वह कहने लगी, “भाई, इस कंगन के बारे में किसी से ना कहना, तुझे मेरी कसम है।” उसने मेरे माथे को चूमा और कहने लगी, “चल, अब चलती हूं। तेरे जीजाजी और बच्चे आते ही होंगे। फिर आऊंगी।” मैं पहली बार उसे घर के बाहर तक छोड़ने आया। देखा तो पैरों की चप्पल भी टूटी हुई थी। उसने कपड़े भी वही पुराने पहने थे। मैं बस उसे ही देखता रह गया।
मैंने तो कभी अपनी बहन के घरेलू हालात जानने की कोशिश ही नहीं की थी। लेकिन जब उसने मुझे पूरे हाल में देखा, तो दौड़ते हुए आई और अपने सोने के कंगन में दे दिए, ताकि मैं अपने बच्चे का इलाज कर सकूं और अपने घर का हाल सुधार सकूं। मैं सोचने लगा और मेरी आंखों से आंसू निकलने लगे कि हम भाई भी कितने मतलबी होते हैं। अपने बहनों को पल भर में ही बेगाना कर देते हैं।
बहनें अपने भाइयों का जरा सा दुःख भी बर्दाश्त नहीं कर पातीं। मैं उसके कंगन अपने हाथों में पकड़कर जोर-जोर से रोने लगा। दोस्तों, आपकी बहन अपने ससुराल में न जाने कितने दुःख सह रही होगी। कुछ समय उसके पास बैठकर उसका हाल-चाल जानने की कोशिश जरूर करें। मालिक सभी बहनों की झोली खुशियों से भर दे!