महाराष्ट्र की राजनीति में चुनावी हार के बाद भी हलचल खत्म नहीं हो रही। महा विकास अघाड़ी (एमवीए) के घटक दल अब विपक्ष के नेता पद को लेकर आमने-सामने हैं। शिवसेना (यूबीटी) और कांग्रेस, दोनों ने इस पद के लिए दावेदारी जताई है, जिससे विपक्षी एकता पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
क्या है विवाद की वजह?
महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष के नेता का पद हासिल करने के लिए कम से कम 29 विधायकों की संख्या जरूरी है। लेकिन एमवीए के किसी भी दल के पास यह आंकड़ा नहीं है। शिवसेना (यूबीटी) और कांग्रेस, दोनों अपनी-अपनी दावेदारी मजबूत करने में जुटे हैं।
उद्धव सेना का रुख
उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली शिवसेना (यूबीटी) ने उपाध्यक्ष और विपक्ष के नेता, दोनों पदों की मांग की है। उनका कहना है कि शिवसेना का अनुभव और सशक्त भूमिका इसे हासिल करने के लिए पर्याप्त हैं।
कांग्रेस ने भी ठोका दावा
कांग्रेस इस दौड़ में पीछे हटने को तैयार नहीं है। पार्टी नेता नाना पटोले ने बयान दिया है कि महा विकास अघाड़ी के भीतर इस पर चर्चा होगी और सर्वसम्मति से निर्णय लिया जाएगा। कांग्रेस अपनी मजबूत उपस्थिति के आधार पर इस पद की मांग कर रही है।
अध्यक्ष का क्या होगा फैसला?
इस मसले का अंतिम निर्णय विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर के पास है। अगर कोई दल आवश्यक संख्या नहीं जुटा पाता, तो विपक्ष के नेता का पद खाली रह सकता है। यह स्थिति महाराष्ट्र की राजनीति में 52 वर्षों बाद पहली बार देखने को मिलेगी।
एमवीए में बढ़ रही दरार
चुनाव में करारी हार के बाद एमवीए के घटक दलों के बीच बढ़ते मतभेद गठबंधन की एकता पर सवाल खड़े कर रहे हैं। यह विवाद बीजेपी और महायुति के लिए राजनीतिक लाभ का अवसर बन सकता है।
क्या टूट जाएगी विपक्षी एकता?
विपक्ष के नेता पद पर यह खींचतान एमवीए के भविष्य पर बड़ा सवाल खड़ा करती है। जहां बीजेपी सत्ता में मजबूती से जमी हुई है, वहीं विपक्ष की आपसी लड़ाई उसकी ताकत को और कमजोर कर सकती है।
अब देखने वाली बात यह होगी कि कांग्रेस और उद्धव सेना आपसी सहमति से इस विवाद को सुलझाते हैं या यह टकराव एमवीए को और कमजोर करेगा।