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बिजनेस की दुनिया से सनातन धर्म की ओर – ‘परम गुरु’ की नई राह

दिल्ली, 19 फ़रवरी: महाकुंभ 2025 में एक नाम सबसे ज्यादा सुर्खियों में है – ‘बिजनेसमैन बाबा’ या ‘परम गुरु’। यह व्यक्ति कभी 3,000 करोड़ रुपये के साम्राज्य का मालिक था, लेकिन उसने अपना सब कुछ त्यागकर सनातन धर्म और समाज सेवा की दिशा में अपने कदम बढ़ाए। आज वे ‘परम गुरु’ के रूप में हजारों लोगों के जीवन में बदलाव ला रहे हैं। उनके बारे में जो खास बात है, वह यह है कि उन्होंने धन, परिवार और भौतिक सुखों को छोड़कर सिर्फ एक उद्देश्य को चुना – सनातन धर्म का प्रचार और मानवता की सेवा।
कौन हैं ‘परम गुरु’ (बिजनेसमैन बाबा)?
‘परम गुरु’ का असली नाम राधेश्याम है और वे हरियाणा के हिसार जिले से आते हैं। उनका जीवन एक प्रेरणा है क्योंकि उन्होंने छोटी सी उम्र से ही मेहनत और ईमानदारी से अपने बिजनेस की शुरुआत की थी।
हालांकि, राधेश्याम का दिल हमेशा से धर्म और सेवा की ओर था। उनकी हमेशा यह भावना रही कि पैसा और भौतिक चीजें स्थायी नहीं होतीं, लेकिन धर्म और समाज सेवा ही जीवन का असली उद्देश्य है।
बिजनेस छोड़कर धर्म की सेवा की राह पर
इसी सोच के साथ राधेश्याम ने अपने सारे भौतिक सुख और संपत्ति छोड़ दी और ‘परम गुरु’ के रूप में एक नई शुरुआत की। उन्होंने सनातन धर्म को फैलाने के लिए अपनी पूरी ऊर्जा और समय समर्पित किया। आज वे महाकुंभ 2025 में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति बन चुके हैं, जहां वे हजारों लोगों को भोजन करा रहे हैं, योग और ध्यान सिखा रहे हैं, और साथ ही धर्म के महत्व को हर किसी के दिल में बैठा रहे हैं।
‘परम गुरु’ की सेवा और योगदान
महाकुंभ में ‘परम गुरु’ ने अपनी सेवा भावना से सभी को चौंका दिया। वे प्रतिदिन लाखों लोगों को मुफ्त भोजन प्रदान कर रहे हैं, साथ ही ध्यान और योग शिविर आयोजित कर रहे हैं। उनका उद्देश्य है कि हर व्यक्ति को जीवन में शांति, संतुलन और धर्म की सच्ची समझ मिले। उनके काम से यह साबित होता है कि सच्ची खुशी धन से नहीं, बल्कि समाज की सेवा और धर्म के पालन से
उनकी यह यात्रा यह साबित करती है कि धर्म और सेवा ही जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्य है।
‘परम गुरु’ की प्रेरणा से हम क्या सीख सकते हैं?
‘परम गुरु’ का जीवन हमें यह सिखाता है कि धन और भौतिक सुखों से परे, जीवन का असली उद्देश्य है धर्म का पालन करना और समाज की सेवा करना। उनका उदाहरण यह दर्शाता है कि कोई भी इंसान अपनी राह बदल सकता है और अपने जीवन को नए उद्देश्य के साथ जोड़ सकता है।
वे ‘बिजनेसमैन बाबा’ से ‘परम गुरु’ बने, और इस बदलाव ने न सिर्फ उनके जीवन को बदल दिया, बल्कि लाखों लोगों को एक नई दिशा दी। उनका यह निर्णय हमें यह समझने में मदद करता है कि सच्चा सुख और संतोष सिर्फ आत्मा की शुद्धि और समाज सेवा में ही है।
‘परम गुरु’ का जीवन एक प्रेरणा है कि भले ही हम जीवन में कितनी भी ऊंचाइयों तक पहुंच जाएं, अगर हम समाज और धर्म की सेवा नहीं करते, तो हमारी यात्रा अधूरी है। ‘बिजनेसमैन बाबा’ के रूप में उनकी सफलता से लेकर ‘परम गुरु’ के रूप में उनकी सेवा तक, यह यात्रा हमें दिखाती है कि सच्चा आत्म-संस्कार और खुशी केवल सेवा और धर्म में निहित है।
आज वे ‘परम गुरु’ के रूप में पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं, लेकिन उनकी असली पहचान उनकी सेवा और समाज के प्रति योगदान में है। उनका जीवन यह सिद्ध करता है कि धन की बजाय सेवा और धर्म से जीवन को असली संतुष्टि मिलती है।

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