8वीं कक्षा में मैं अक्सर स्कूल में लंचबॉक्स नहीं ले जाता था, क्योंकि मुझे और कुछ लड़कों को यह बोरिंग लगता था। एक दिन, जब मैं स्कूल में लंचबॉक्स नहीं ले गया, तो मेरी माँ ने मुझे सिखाने के लिए पूरा दिन खाना नहीं दिया। इस घटना ने मेरे जीवन में एक बड़ा बदलाव ला दिया। इसके बाद से, मुझे खुद से खाना परोसने और बर्तन धोने की जिम्मेदारी दी गई, जो केवल दोपहर के भोजन तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि नाश्ते और रात के खाने तक फैल गया।
समय के साथ, मैंने देखा कि घर के सभी सदस्य, यहाँ तक कि मेरे पिता भी, घर के कामों में योगदान देते हैं। माँ की इस आदत ने हम सभी को आत्मनिर्भर और सहयोगी बनाया। अब, मैं खुद से खाना बनाने के साथ-साथ घर के बाकी कामों में भी बराबर का योगदान देता हूँ। चाहे वह सुबह की चाय बनाना हो या रात के बर्तन धोना, मैं सब कुछ खुद करता हूँ और इसमें मुझे कोई शिकायत नहीं है।
यह अनुभव मुझे जीवन के महत्वपूर्ण सबक सिखाता है: आत्मनिर्भरता और जिम्मेदारी। अब मुझे किसी से उम्मीद नहीं करनी पड़ती, और खुद को स्वावलंबी बनाने में मुझे गर्व महसूस होता है।