नई दिल्ली, 17 दिसंबर 2024: आज केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने लोकसभा में ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ बिल पेश किया, जिसे ‘संविधान (129वां संशोधन) विधेयक 2024’ के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इस बिल का उद्देश्य भारत में एक ही समय पर सभी चुनाव कराना है, ताकि चुनाव प्रक्रिया को सरल और प्रभावी बनाया जा सके। लेकिन, जैसे ही इस बिल को सदन में पेश किया गया, विपक्षी दलों ने इसका विरोध शुरू कर दिया है।
विपक्षी दलों ने किया कड़ा विरोध
विपक्षी दलों ने इस विधेयक पर अपनी तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त की है। कांग्रेस ने इस बिल के खिलाफ आज सुबह आपात बैठक बुलाई, और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इसे ‘संविधान को नष्ट करने की साजिश’ करार दिया। विरोध में उठी आवाजों में यह स्पष्ट हो गया है कि विपक्ष इस बिल को लोकतंत्र की प्रक्रिया पर हमला मानता है।
क्या है ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का विचार?
‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का तात्पर्य है कि भारत में लोकसभा चुनाव, राज्य विधानसभा चुनाव और स्थानीय निकाय चुनाव (जैसे नगर निगम, ग्राम पंचायत) सभी एक ही समय पर होंगे। इससे चुनावी प्रक्रियाओं की बार-बार होने वाली स्थिति को समाप्त किया जाएगा और प्रशासन पर भी कम दबाव पड़ेगा।
पीएम मोदी का समर्थन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लंबे समय से इस विचार का समर्थन किया है। उन्होंने 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस पर अपने भाषण में ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की वकालत की थी। उनका कहना है कि चुनावों की बार-बार प्रक्रिया विकास कार्यों में बाधा डालती है। प्रधानमंत्री का मानना है कि अगर सभी चुनाव एक साथ होंगे तो सरकारों को लंबे समय तक स्थिरता मिलेगी और वे विकास कार्यों पर ज्यादा ध्यान दे सकेंगी।
‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के फायदे
लागत में कमी: एक साथ चुनाव कराने से चुनावी खर्च में भारी कमी आएगी, क्योंकि बार-बार चुनाव कराने से हर बार अलग-अलग खर्च होते हैं।
प्रशासनिक बोझ में कमी: चुनावों की बार-बार प्रक्रिया से प्रशासन और सुरक्षा बलों पर अतिरिक्त दबाव बनता है। यदि चुनाव एक साथ होंगे, तो यह दबाव कम होगा और संसाधनों का सही तरीके से इस्तेमाल किया जा सकेगा।
विकास कार्यों पर ध्यान: जब चुनावों की प्रक्रिया समाप्त हो जाएगी, तब केंद्र और राज्य सरकारें अपनी योजनाओं और विकास कार्यों पर पूरी तरह से ध्यान केंद्रित कर सकेंगी।
क्या ये योजना सफल हो पाएगी?
हालांकि, ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का विचार भारत में चुनाव प्रक्रिया को सुधारने का एक बड़ा कदम है, लेकिन इसे लागू करने में कई चुनौतियाँ भी हैं। संसाधनों की कमी, जैसे ईवीएम मशीनों की सीमित संख्या और चुनावी अधिकारियों की कमी, इसके समक्ष बड़ी बाधाएं बन सकती हैं। इसके अलावा, चुनाव की तैयारी में काफी समय और संसाधनों की आवश्यकता होगी, जो वर्तमान में उपलब्ध नहीं हैं।
निष्कर्ष
‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का बिल भारत में चुनाव प्रणाली को अधिक सुव्यवस्थित और कम खर्चीला बनाने का एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है, लेकिन इसे लागू करने से पहले इसे लेकर बहुत सारी राजनीतिक, प्रशासनिक और संसाधन से जुड़ी समस्याओं का समाधान करना होगा। फिलहाल, विपक्षी दलों का विरोध इस विधेयक को लेकर जारी है, और संसद में इस पर चर्चा और निर्णय आना बाकी है।